सोमवार, 30 नवंबर 2009

कविता - पापा मुझे पढ़ाओ ना

सही बोलना - लिखना मम्मी-पापा, मुझे पढ़ाओ ना ।
छोटे-छोटे वाक्य बनाना फिर तुम मुझे बताओ ना ।
गोल-गोल मोती से सुन्दर, अक्षर मुझे सिखाओ ना ।
अंक बड़े मुक्ता जैसे कैसे मैं लिखूं बताओ ना ।।
पापा मुझे पढ़ाओ ना ।।
काम करूँ सब सुथरा-सुन्दर, इसका राज बताओ ना ।
काट-छाँट नहिं करूँ लेख में, इसका मार्ग दिखाओ ना ।
रहूँ सदा मैं प्रथम क्लास में, इसका मार्ग दिखाओ ना ।
सौ में सौ लाऊँ मैं नम्बर, इसका भेद बताओ ना ।।
पापा मुझे पढ़ाओ ना
नई-नई बात बताकर, मेरा ज्ञान बढ़ाओ ना ।
अच्छी-अच्छी सीखें देकर, मेरा शील बढ़ाओ ना ।
पापा प्यारे, मम्मी अच्छी, दोनों मुझे पढ़ाओ ना ।
मुझे बनाओ शिष्य लाडला, तुम शिक्षक बन जाओ ना ।।
पापा मुझे पढ़ाओ ना ।।
अगर पढ़ाओ तुम दोनों तो, मैं दुनियां में नाम करूँ ।
बन कर ज्ञानी, गुणी, शीलसम्पन्न प्रगतिपथ पर पैर घरूँ ।
मेरे नगर- गांव की बढ़-चढ़ सब विधि सेवा सदा करूँ ।
दीन-दुखी हर विश्व मनुज के जीवन की मैं पीर हरूँ ।।
पापा मुझे पढ़ाओ ना ।।

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