बुधवार, 2 दिसंबर 2009

कहानी - स्वर्ग का मार्ग

चार दोस्त थे । एक गांव में रहते थे । उनमें एक धनी, एक गरीब, एक विद्वान तथा एक किसान था । वह अधिक पढ़ा-लिखा नहीं था । धनी व्यापार करता था, व्यापार के दौर न वह ग्राहकों से धोखाधड़ी करता, बाजार में काला बाजारी करता । अपने इन पापों को धोने के लिए वह खूब दान-पुण्य करता । गरीब मेहनत-मजदूरी कर अपना तथा अपने परिवार का पेट पालता । वह ईमानदारी से काम करता । लोगों की जरूरत में उनकी मदद करता । विद्वान उपदेश देता । भगवान को प्राप्त करने मार्ग बताता । रोजाना मन्दिर जाता । वहाँ सुबह-शाम दीपक जलाता । उपदेश देने के बदले वह लोगों से मोटी रकम लेता । किसान खेती से अपनी आजीविका चलाता । जब खेती का कार्य नहीं होता तब अपनी लगी के गरीब बच्चों को पढ़ाता था । रोज रात को अपनी गली में दीपक जलाता । दुर्भाग्य से गांव में बाढ़ आ गई । गांव चैपट हो गया । मकान गिर गए । गांववासी बेघरवार हो गए । इस दुश्चक्र में चारों मित्रों की मृत्यु हो गई । चारों को यमराज के पास ले जाया गया । यमराज ने गरीब तथा अनपढ़ दोनों को स्वर्ग तथा धनिक एवं विद्वान को नरक ले जाने का आदेश दिया । यमराज का आदेश सुनकर धनिक ने कहा -‘‘महाराज ! मैं खूब दान-पुण्य करता था । मुझे नरक में क्यों भेज रहे हैं । मैंने तो सुना था कि दान-पुण्य करने वाले को स्वर्ग मिलता है ।‘‘ यमराज ने कहा - ‘‘देखो धनिक ! तुम दान-पुण्य तो करते थे किन्तु कालाबाजारी तथा बेईमानी भी करते थे । तुमने दान-पुण्य अपने गलत कामों को धोने के लिए किए थे । ईमानदारी से व्यापार करते हुए दान-पुण्य करता तो अवश्य काम आता । इसी तरह तुम्हारे दोस्त विद्वान ने भी प्रभु-प्राप्ति के लिए उपदेश जरूर दिए किन्तु बदले में भारी धनराशि भी ली । इस लिए तुम दोनों नरक के ही अधिकारी हो । किसान कम मित्र पढ़ा-लिखा जरूर था लेकिन उसने अनपढ़ों को पढ़ाया । अंधेरी गली में रोशनी की । मन्दिर में तो रोशनी पहले ही होती है । गरीब निर्धन होते हुए भी अपना काम ईमान से करता । इन दोनों के कार्य महान् हैं । इसलिए ये दोनों स्वर्ग के अधिकारी हैं ।‘‘ उन्होंने आगे कहा कि जो लोग दुखियों के दुख दूर करे, अंधों को को आंखें दे, पथभ्रष्ट लोगों को रास्ता दिखाए, वे ही स्वर्ग के अधिकारी हैं । वे लोग जो दिखावे के लिए कुछ करते हैं । अपने कुकर्मों को मिटाने के लिए पुण्य करते हैं । उन्हें तो नरक ही मिलेगा।

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