गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

समै रो सांच

एक अधेड़ उमर रो हटो-कटो आदमी हो । उणनै आपरै सरीर पर घणो घमण्ड हो । उण रे गांव मांय ही एक मंगतो रेवतों । बो मांग‘र खुदरो पेट भरतो । एक दिन एक मोटर भीड़नै गिरग्यो । उण री आंख फूटगी अर आंधों होग्यो पण बो मांगणों नीं छोड़्यो। होळै-होळै बो बुढ़ापै रै साथै-साथै बीमार भी रेवणै लागग्यो । उण रो सरीर जबाब देवणै लागग्यो । एक-एक हाडी-पांसळी दिखणै लागगी । भीख मांगणी अब भी नीं छोड़ी । लोग-बाग उणनै देखता । बो अधेड़ भी देखतो । एक दिन अधेड़ रे मन मांय दया आई अर बो मंगतै रे कनै जाय‘र बोल्यो - अरे बाबा ! तेरी हालत घणी खराब है । तेरो ओ जीणो जीणो थोड़े ही है । फेर भी तूं मांगतो रेवै । भगवान भी इतो निर्दयी है कै तनै मौत नीं देवै । तनैं तो भगवान सूं अरदास करनी चाहिजै को बो तनै बुला लेवै । अधेड़ री बात सुण‘र मंगतो बोल्यो - बेटा ! म्हे भी थारी आ ही सोचूं अर रोज भगवान नै हाथ जोड़‘र कैवूं कै भगवान म्हनै इण धरती सूं उठा ले पण भगवान मेरी बात सूणै नीं । सायद बो म्हनै देखण वाळा नै आ महसूस कराणै चावै कै एक दिन उणरी भी हालत इसी होय सकै । अधेड़ नै हियै च्यानणो होग्यो कै बैर भाव अर घमण्ड नै भूल ‘र जीवणै मांय ही सार है । समै एक जिस्यो नीं रवै ।

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