मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

अपेक्षित शिक्षा प्रणाली

बालक का शारीरिक, मानसिक, नैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास कर उसको जीवन जीने के योग्य बनाना शिक्षा का मौलिक उद्देश्य होता है । बालक की रुचियों, मनोवृत्तियों तथा व्यवहार को परिष्कृत कर उसके व्यक्तित्व-निर्माण का साध्य है - शिक्षा। परीक्षा साध्य तक पहुँचने का साधन है । हम यह भी कह सकते हैं कि शिक्षा बालक के सर्वांगीण विकास का साधन और परीक्षा उसे पाने का माध्यम् है । आज का विद्यार्थी साध्य को भूलकर साधन को अधिक महत्त्व दे रहा है । केवल परीक्षा उत्तीर्ण कर उपाधि प्राप्त करना ही उसका ध्येय रह गया है । आज प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन की ऊँचाइयों का छुने के लिए भौतिकवाद की दौड़ में शामिल हो गया है । उच्च पदों पर नियुक्ति के लिए उपाधि रूपी शैक्षिक योग्यता हासिल करना उसका प्राथमिक उद्देश्य बन गया है । मूलतः परीक्षा उत्तीर्ण करना शिक्षा नहीं है । शिक्षा तो बालक का सर्वांगीण विकास करती है उसे विद्या प्रदान करती है । आज की शिक्षा विद्याविहीन शिक्षा है । वह केवल किताबी कीड़ों की फौज तैयार कर रही है । वस्तुतः आज की शिक्षा मैकाले की शिक्षा पद्धति पर आधारित है । मैकाले ने कहा था -‘‘इस शिक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत शिक्षित भारतीय रंग-रूप में तो भारतीय होंगे परन्तु मन-मस्तिष्क, चिन्तन और रहन-सहन के स्तर पर अंग्रेजी संस्कृति के गुलाम होंगे ।‘‘ आज हम उसी शिक्षा प्रणाली का अनुसरण कर रहे हैं । दर असल मैकाले की शिक्षा को शिक्षा मानकर हमने अपनी जड़ों को काटने तथा संस्कृति को विलुप्त करने की भूल की । हमने ज्ञान-विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, उद्योग आदि अनेकों क्षेत्रों में प्रगति की है किन्तु भीतर से खोखले होते जा रहे हैं । हमने परम्परागत शिक्षा-स्रोत जिनमें परिवार एवं समाज के संतुलित निर्माण व विकास करने की क्षमता थी, को दरकिनार किया । हम शिक्षा के मूल तत्त्वों से हटकर साक्षर बनाने वाली वर्तमान शिक्षा के पीछे भाग रहे हैं । इस दिशाहीन शिक्षा के कारण भूखमरी, गरीबी, बेरोजगारी, सामाजिक असमानता, साम्प्रदायिकता, अपराध, आतंकवाद न जाने क्या-क्या समस्याओं से हम धिर गए हैं । अधूरी तथा तात्कालिक लाभ देने वाली शिक्षा जीवन में नैराश्य और हताशा ही ला रही है। आज की शिक्षा शिक्षित बना रही है किन्तु चेतन एवं संवेदनशील कितने बन रहे हैं ? शिक्षा में समर्पण का भाव नहीं है । धन कमाना शिक्षितों की प्राथमिकता बन गई है । हम शिक्षा की चकाचैंध में इस कदर खो गए हैं कि पीछे मुड़कर देखना ही नहीं चाहते । वर्तमान शिक्षा का ही दुष्परिणाम है कि आज विसंगतियां, विषमताएं, विदु्रपताएं तथा विडम्बनाएं बढ़ी हैं । आज के शिक्षित भ्रमित है और उसमें कुण्ठाएं पनपी हैं । ऐसा व्यक्ति मानसिक रूप से कैसे स्वस्थ रह सकता है ? आज जरूरत है शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की । भूमण्डलीकरण के इस दौर में सर्वांगीण विकास की पूर्ति करने वाली मौलिक एवं मूल्यपरक शिक्षा की आवश्यकता है ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. वर्तमान संदर्भ में मूल्यपरक एवं उद्देश्यपूर्ण शिक्षा प्रदान करने वाली शैक्षिक व्यवस्था की आवश्यकता है ।
    डा. रीमा सोनी

    जवाब देंहटाएं

कृपया सटीक एवं उपयोगी टिप्पणी प्रेषित करें