महात्माजी रामू को आशीर्वाद देकर वहाँ से चले गए । आगे जाकर उनी भंेट तुलाधर नामक एक विद्वान से हुई । महात्माजी ने उससे भी तीर्थ के बारे में चर्चा की । तुलाधर ने कहा कि उसके गांव में न जाने कितने भूखे हैं, कितने गरीब और बीमार हैं। अगर मेरे पास पैसा है तो मैं पहले उनके दुख-दर्द को दूर करने में खर्च करना ज्यादा ठीक मानता हूँ क्योंकि मानव सेवा से बढ़कर दूसरा कोई तीर्थ नहीं है ।मेरी तो तीर्थ यात्रा दीन-दुखियों की सेवा करना है ।
महात्माजी उसके विचारों से बड़े खुश हुए । उन्होंने तुलाधर को अपना गुरु माना और मानव-सेवा में जुट गए ।